ललितपुर सिंगरौली रेललाईन भूमि अधिग्रहण में व्यापक अनियमितता का आरोप लगाया है उन्होंने कहा है कि
भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 का आदेश 2015 के पैर 2 के अनुसार अधिनियम कि चौथी अनुसूची के अधिनियमदाता को अपने-अपने अधिनियम से भू अर्जन की प्रक्रिया करना है एवं रासी की गणना अधिनियम 2013 की पहली अनुसूची अनुसार प्रतिकर एवं दूसरी अनुसूची अनुसार पुनर्वास एवं तीसरी अनुसूची अनुसार पुनर व्यवस्थापन की राशि का गणना करना करने का आदेश 2015 में किया गया है
श्री शुक्ला ने कहा है कि प्रचलन भू-अर्जन प्रक्रिया में रेलवे एवं राजस्व विभाग द्वारा व्यापक स्तर पर भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के प्रावधानों की अनदेखी की जा रही है, एवं भू अर्जन की कार्यवाही को रेल अधिनियम 1989 (1989 का 24) के मानकों के अनुरूप संचालित किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरुप आवेदको को भू-अर्जन के बदले मिलने वाली क्षतिपूर्ति से वंचित होना पड़ रहा है.
उन्होंने बताया है कि सबसे प्राथमिक रूप से किसी भी भू-अर्जन प्रक्रिया को शुरू करने हेतु आवेदक संस्था द्वारा एक आवेदन जिला कलेक्टर (समुचित सरकार/भूअर्जन अधिकारी) एवं संभागीय कमिशनर (आयुक्त पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन) को देना होता है. उक्त आवेदन को भू-अर्जन अधिनियम 2013 (प्रतिकर, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन विकास योजना) के नियम 2015 की अध्याय 2 के नियम 3(i) के अनुसार प्ररूप एक उपबंध 1, 2, 3 के मुताबिक देना होता है. किन्तु रेलवे द्वारा जो आवेदन दिया गया है उसमे किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं प्रस्तुत की गई है.
डीपी शुक्ला ने बताया है कि आवेदन प्राप्त होने के पश्चात् कलेक्टर द्वारा नियम 4 की कार्यवाही पूर्ण करने के बाद प्रारंभिक अधिसूचना का प्रकाशन अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत किया जाएगा. धारा 11 में निदृष्ट प्रारम्भिक सुचना का प्रकाशन भू-अर्जन अधिनियम 2013 के नियम 2015 की अध्याय 3 के नियम 5(i) प्ररूप 2 के अनुसार की जाएगी. किन्तु कलेक्टर द्वारा नियमो की अवहेलना करते हुए 1989 रेल अधिनियम एक्ट के प्ररूप के मुताबिक की गयी है।
पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के उदेश्य से 2013 एक्ट स्पष्ट रूप से कहता है कि धारा 11 की अधिसूचना के प्रकाशन में स्वामित्व का प्रकार, भूमि का प्रकार, अर्जन का क्षेत्र, हितबद्ध व्यक्ति का नाम-पता, जमीन की चौहद्दी, वृक्षों की किस्म व संख्या एवं संरचना व उसके प्लिंथ एरिया की जानकरी व धारा 15 की सुनवाई करने हेतु पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के प्रशासक कौन होगा व प्रारूप मुताबिक इत्यादि तथ्यों की जानकारी प्रकाशन में देनी होती है. किन्तु कलेक्टर के द्वारा आराजी के अर्जन हेतु जो धारा 11 का प्रकाशन किया गया है उसमे मात्र खसरा क्रमांक व रकवे भर का ही विवरण ही वर्णित किया गया है।
उन्होंने बताया कि धारा11 के प्रकाशन में ही धारा 12 का सर्वे करने हेतु कलेक्टर सिंगरौली द्वारा आवेदक संस्था के प्रतिनिधि उप मुख्य अभियन्ता को ही धारा 12 का प्राधिकृत अधिकारी बना दिया गया है. जबकि 03 अक्टूबर 2014 को प्रकाशित मध्यप्रदेश राजपत्र में स्पष्ट वर्णित है की धारा 12 का सर्वे करने हेतु जिला कलेक्टर कार्यालय के भूअर्जन शाखा के प्रभारी अधिकारी को जो डिप्टी कलेक्टर से अनिम्न श्रेणी का होगा उसे ही सर्वे करने के लिए अधिकृत कर सकेगी. किन्तु यहाँ पर नियमों की स्पष्ट अनदेखी कलेक्टर द्वारा की गई है।
डीपी शुक्ला का कहना है कि धारा 11 का प्रकाशन के पश्चात् एवं धारा15 की सुनवाई के पूर्व भू-अर्जन अधिनियम 2013 के नियम 2015 की अध्याय 3 के नियम 6 के प्ररूप 3 के मुताबिक हितबद्ध व्यक्तियों को अर्जन की जानकारी कलेक्टर को देनी थी, किन्तु इस आशय की कोई नोटिस नहीं दी गयी है. जबकि धारा 11 का विधि सम्मत प्रकाशन ना होने की स्थिति में भी कई व्यक्तियों के द्वारा धारा 15 की आपत्तियां कलेक्टर कार्यालय जिला सिंगरौली में प्रस्तुत की गयी है, किन्तु उसको सुनवाई में नहीं ली गयी.
उन्होंने बताया कि भू-अर्जन अधिनियम 2013 के नियम 2015 की अध्याय 3 के नियम 7 एवं 8 की भी अनदेखी की गयी है।
डीपी शुक्ला का कहना है कि भू-अर्जन अधिनियम 2013 के धारा 19 में सचिव द्वारा अर्जन के घोषणा का प्रकाशन किया जाता है जिसमे भू-अर्जन अधिनियम 2013 के नियम 2015 की अध्याय 5 के नियम 10 के प्ररूप 5 के मुताबिक प्रकाशन किया जाना है, जिसमें स्वामित्व का प्रकार, भूमि का प्रकार, अर्जन का क्षेत्र, हितबद्ध व्यक्ति का नाम-पता, जमीन की चौहद्दी, वृक्षों की किस्म व संख्या एवं संरचना व उसके प्लिंथ एरिया की जानकरी को घोषित कर सार्वजनिक किया जाएगा साथ ही साथ प्रभावित कुटुम्बो के पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के सम्बन्ध में घोषणा का प्रावधान है किन्तु वर्तमान मे ललितपुर सिंगरौली रेल लाइन भू अर्जन परियोजना हेतु धारा 19 की घोषणा में भूअर्जन एक्ट 1894 की धारा 6 के प्ररूप में किया गया है.
10. यह कि भू-अर्जन अधिनियम 2013 के धारा 21 की सुचना प्रदान की गयी है जिसमे भूअर्जन अधिनयम 1894 के धारा 9 के मुताबिक नोटिस तैयार कर दी जाती है जबकि कलेक्टर को अधिनियम 2013 मे मात्र धारा 19 के प्ररूप में किए गए घोषणा की सुचना व एवं धारा 20 के अनुरूप किए गए मापमान एवं रेखांकन की जानकारी सभी हितबद्ध व्यक्तियों को व्यक्तिशः देना चाहिए. किन्तू कलेक्टर के द्वारा मनमानी पूर्वक मनमानी पूर्वक जमीन, संरचना व अन्य परिसंपत्तियों की राशि की गणना कर नोटिस प्रदान की गयी है जबकि यह नोटिस राशि की गणना कर भूअर्जन अधिनियम 2013 की धारा 23 के नियम 2015 के अध्याय 4 के नियम 11 के प्ररूप 6 एवं 7 के तहत गणना कर धारा 38(i) के तहत हितबद्ध व्यक्तियों को प्रदान की जानी है।
यह कि अधिनियम 2013 की धारा 21 के तहत असगंत ढंग से तैयार नोटिस जो आवेदक को प्राप्त हुई है उसमे आराजी पर भूमि स्वामियों के स्थान पर अन्य व्यक्तियों के नाम मकान दर्ज कर नोटिस तैयार की गयी है. भूमि स्वामीयो को प्राप्त नोटिस में उक्त आराजी पर स्थित मकान का कोई उल्लेख नहीं है. जबकि अधिकारी के द्वारा भू-अर्जन शाखा से स्थल पंचनामा एवं मूल्यांकन पत्रक की जो नक़ल प्राप्त की जाती है उसमे मकान का मापन एवं मूल्यांकन सर्वे दल द्वारा तैयार किया गया गया, जिसमे आवेदको के नाम का मकान दर्ज है. किन्तु भूअर्जन अधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार की नियत से मकानों को नोटिस से बाहर कर दिया जाता है।
जबकि मकान की राशि की गणना गाइडलाइन मुताबिक नहीं की गई है ।
सम्पूर्ण भू-अर्जन प्रक्रिया को रेल अधिनियम 1989 के प्रारूपों के अनुसार संचालित किया जा रहा एवं भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के प्रावधानों की अनदेखी की जा रही है. विभिन्न लोकसूचनाओं में उल्लेख तो 2013 अधिनियम का है किन्तु उनको तैयार करने का प्ररूप 1894 या रेल अधिनियम 1989 में बनाये कानून का है. पारदर्शिता को पूरी तरीके से नज़रंदाज़ करते हुए व्यापक स्तर पर मनमाने ढंग से भ्रष्टाचार एवं अनियमितता कारित की जा रही है।